महमूद मदनी
राज्यसभा सदस्य
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ये देश एक ऐसा देश है कि पूरी दुनिया में इसके जैसा कोई दूसरा आपको नहीं मिलेगा। एक ऐसा देश जहां इतनी सारी भाषाएं, धर्म, जातियां, कल्चर और भी बहुत सारी चीजें हैं।
जनरल इलेक्शन से अगले 5 सालों के लिए लोगों की तकदीर का फैसला होगा। और उस 5 साल की सरकार का असर सिर्फ 5 सालों तक ही नहीं होता बल्कि अगर गलत नीतियां हों तो अगले कई सालों तक हमें उसके प्रभावों के बर्दाश्त करना पड़ता है। ये हमारे देश के भविष्य का सवाल है।
पिछले 60 सालों में एक ऐसा वातावरण क्रिएट कर दिया गया है कि मुसलमान और हिंदू अलग रहें। हम एक दूसरे की परेशानियां सोचते नहीं हैं, फिक्र नहीं करते और जज्बात से सोचने की कोशिश नहीं करते कि हमारे सामने वाले के क्या इमोशंस हैं। मेरे ख्याल से चुनावों में धर्म, जाति के आधार पर वोटिंग करना सही नहीं है। ये एक चिंता का विषय है।
इंडियन डेमोक्रेसी में मुस्लिम पार्टिसिपेशन नंबर के ऐतबार से ठीक नहीं है और क्वॉलिटी के ऐतबार से तो जीरो है। सही मायने में पार्टियों ने मुस्लिम लीडरशिप को पॉलिटिकल स्पेस नहीं दिया। बल्कि उन लोगों को पॉलिटिकल स्पेस मिला जो पार्टियों के पॉलिटिकल लीडर हैं मुसलमानों के पॉलिटिकल लीडर नहीं हैं। जो जमीन से जुड़े हुए नेता थे और हैं उन्हें पार्टी ने मौका ही नहीं दिया। ऊपर पहुंचे वो जो पार्टी के नेता थे। मुसलमानों के नेता नहीं थे। उन्हीं को मौका मिल रहा है तो वो पीछे मुड़कर क्यों देखेंगे। मैं मानता हूं कि किसी नए पॉलिटिकल इस्टैबलिशमेंट की जरूरत है, पार्टी की जरूरत है। लेकिन सिर्फ इस्लाम और मुसलमान के नाम पर नहीं बल्कि जिन लोगों को न्याय नहीं मिला है वो सब एक साथ आगे बढ़ें।
अगर मुसलमान की बात करें तो उसे सिर्फ एजुकेशन की जरूरत है। अगर 20 साल का एक टारगेट मुसलमान सेट कर लें तो 20 साल में एक बदलाव आएगा, एक जनरेशन आएगी। एजुकेशन के मामले में हमने बहुत कोशिश की है। हमसे ज्यादा किसी ने नहीं की है इस देश में। हमारे 3 हजार से ज्यादा प्राइमरी स्कूल चलते हैं मदरसों के साथ। जहां मेन स्ट्रीम प्राइमरी एजुकेशन होती है। हमने लड़कियों के लिए टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज बनाया और अब आगे लड़कियों के लिए वेस्टर्न यूपी में मेडिकल यूनिवर्सिटी बनाने की सोच रहे हैं।
ये बहुत बड़ा मुल्क है तो सबसे पहले लोगों को इसके लिए तैयार करना है कि एजुकेशन की जरूरत क्यों है। हम मुसलमानों से ये कह रहे हैं कि तुम्हें बच्चों और बच्चियों को पढ़ाना है खासतौर से बच्चियों को। ये एक दिन का काम नहीं है। इसके लिए आपको 20 से 30 साल का टार्गेट सेट करना पड़ेगा। जो बच्ची आज पढ़ेगी उसी आगे वाली जेनरेशन उसका रिजल्ट होगी। तो 40 साल बाद यापको ये मालूम होगा कि हमने क्या खोया और क्या पाया।
मुझे अगर मौका मिलेगा तो मुस्लिम कम्यूनिटी ही नहीं बल्की सबके लिए एजुकेशन, प्राइमरी हेल्थ और समाज में आजादी के नाम पर जो नंगापन फैलाया जा रहा है जिससे हमारी नसल की नसल बर्बाद हो रही है उसको ठीक करने के लिए बोलूंगा। औरतों को बराबरी मिलनी चाहिए लेकिन कपड़े उतारने से बराबरी नहीं मिलती एटीट्यूड बदलने से बराबरी मिलती है। औरत को बाजार में खड़ा कर दिया और घर में उसके साथ वही ढंग है दहेज का भ्रूण हत्या का। ये कैसी आजादी है।
जनरल इलेक्शन से अगले 5 सालों के लिए लोगों की तकदीर का फैसला होगा। और उस 5 साल की सरकार का असर सिर्फ 5 सालों तक ही नहीं होता बल्कि अगर गलत नीतियां हों तो अगले कई सालों तक हमें उसके प्रभावों के बर्दाश्त करना पड़ता है। ये हमारे देश के भविष्य का सवाल है।
पिछले 60 सालों में एक ऐसा वातावरण क्रिएट कर दिया गया है कि मुसलमान और हिंदू अलग रहें। हम एक दूसरे की परेशानियां सोचते नहीं हैं, फिक्र नहीं करते और जज्बात से सोचने की कोशिश नहीं करते कि हमारे सामने वाले के क्या इमोशंस हैं। मेरे ख्याल से चुनावों में धर्म, जाति के आधार पर वोटिंग करना सही नहीं है। ये एक चिंता का विषय है।
इंडियन डेमोक्रेसी में मुस्लिम पार्टिसिपेशन नंबर के ऐतबार से ठीक नहीं है और क्वॉलिटी के ऐतबार से तो जीरो है। सही मायने में पार्टियों ने मुस्लिम लीडरशिप को पॉलिटिकल स्पेस नहीं दिया। बल्कि उन लोगों को पॉलिटिकल स्पेस मिला जो पार्टियों के पॉलिटिकल लीडर हैं मुसलमानों के पॉलिटिकल लीडर नहीं हैं। जो जमीन से जुड़े हुए नेता थे और हैं उन्हें पार्टी ने मौका ही नहीं दिया। ऊपर पहुंचे वो जो पार्टी के नेता थे। मुसलमानों के नेता नहीं थे। उन्हीं को मौका मिल रहा है तो वो पीछे मुड़कर क्यों देखेंगे। मैं मानता हूं कि किसी नए पॉलिटिकल इस्टैबलिशमेंट की जरूरत है, पार्टी की जरूरत है। लेकिन सिर्फ इस्लाम और मुसलमान के नाम पर नहीं बल्कि जिन लोगों को न्याय नहीं मिला है वो सब एक साथ आगे बढ़ें।
अगर मुसलमान की बात करें तो उसे सिर्फ एजुकेशन की जरूरत है। अगर 20 साल का एक टारगेट मुसलमान सेट कर लें तो 20 साल में एक बदलाव आएगा, एक जनरेशन आएगी। एजुकेशन के मामले में हमने बहुत कोशिश की है। हमसे ज्यादा किसी ने नहीं की है इस देश में। हमारे 3 हजार से ज्यादा प्राइमरी स्कूल चलते हैं मदरसों के साथ। जहां मेन स्ट्रीम प्राइमरी एजुकेशन होती है। हमने लड़कियों के लिए टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज बनाया और अब आगे लड़कियों के लिए वेस्टर्न यूपी में मेडिकल यूनिवर्सिटी बनाने की सोच रहे हैं।
ये बहुत बड़ा मुल्क है तो सबसे पहले लोगों को इसके लिए तैयार करना है कि एजुकेशन की जरूरत क्यों है। हम मुसलमानों से ये कह रहे हैं कि तुम्हें बच्चों और बच्चियों को पढ़ाना है खासतौर से बच्चियों को। ये एक दिन का काम नहीं है। इसके लिए आपको 20 से 30 साल का टार्गेट सेट करना पड़ेगा। जो बच्ची आज पढ़ेगी उसी आगे वाली जेनरेशन उसका रिजल्ट होगी। तो 40 साल बाद यापको ये मालूम होगा कि हमने क्या खोया और क्या पाया।
मुझे अगर मौका मिलेगा तो मुस्लिम कम्यूनिटी ही नहीं बल्की सबके लिए एजुकेशन, प्राइमरी हेल्थ और समाज में आजादी के नाम पर जो नंगापन फैलाया जा रहा है जिससे हमारी नसल की नसल बर्बाद हो रही है उसको ठीक करने के लिए बोलूंगा। औरतों को बराबरी मिलनी चाहिए लेकिन कपड़े उतारने से बराबरी नहीं मिलती एटीट्यूड बदलने से बराबरी मिलती है। औरत को बाजार में खड़ा कर दिया और घर में उसके साथ वही ढंग है दहेज का भ्रूण हत्या का। ये कैसी आजादी है।
आई थिंक व्हाट ही सैड वाज बेसिकली राइट। एव्रीवन शुड हैव ऐजुकेशन। दैट इज हाउ अवर कल्चर कैन प्रौग्रैस। आई एम हाइली इंप्रैस्ड बाय यौर हाई थौट्स अबाउट ऐजुकेशन इन इंडिया।
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