Sunday, April 12, 2009

Thursday, April 09, 2009

सबको शिक्षा से आएगा बदलाव

महमूद मदनी
राज्यसभा सदस्य
ये देश एक ऐसा देश है कि पूरी दुनिया में इसके जैसा कोई दूसरा आपको नहीं मिलेगा। एक ऐसा देश जहां इतनी सारी भाषाएं, धर्म, जातियां, कल्चर और भी बहुत सारी चीजें हैं।

जनरल इलेक्शन से अगले 5 सालों के लिए लोगों की तकदीर का फैसला होगा। और उस 5 साल की सरकार का असर सिर्फ 5 सालों तक ही नहीं होता बल्कि अगर गलत नीतियां हों तो अगले कई सालों तक हमें उसके प्रभावों के बर्दाश्त करना पड़ता है। ये हमारे देश के भविष्य का सवाल है।

पिछले 60 सालों में एक ऐसा वातावरण क्रिएट कर दिया गया है कि मुसलमान और हिंदू अलग रहें। हम एक दूसरे की परेशानियां सोचते नहीं हैं, फिक्र नहीं करते और जज्बात से सोचने की कोशिश नहीं करते कि हमारे सामने वाले के क्या इमोशंस हैं। मेरे ख्याल से चुनावों में धर्म, जाति के आधार पर वोटिंग करना सही नहीं है। ये एक चिंता का विषय है।

इंडियन डेमोक्रेसी में मुस्लिम पार्टिसिपेशन नंबर के ऐतबार से ठीक नहीं है और क्वॉलिटी के ऐतबार से तो जीरो है। सही मायने में पार्टियों ने मुस्लिम लीडरशिप को पॉलिटिकल स्पेस नहीं दिया। बल्कि उन लोगों को पॉलिटिकल स्पेस मिला जो पार्टियों के पॉलिटिकल लीडर हैं मुसलमानों के पॉलिटिकल लीडर नहीं हैं। जो जमीन से जुड़े हुए नेता थे और हैं उन्हें पार्टी ने मौका ही नहीं दिया। ऊपर पहुंचे वो जो पार्टी के नेता थे। मुसलमानों के नेता नहीं थे। उन्हीं को मौका मिल रहा है तो वो पीछे मुड़कर क्यों देखेंगे। मैं मानता हूं कि किसी नए पॉलिटिकल इस्टैबलिशमेंट की जरूरत है, पार्टी की जरूरत है। लेकिन सिर्फ इस्लाम और मुसलमान के नाम पर नहीं बल्कि जिन लोगों को न्याय नहीं मिला है वो सब एक साथ आगे बढ़ें।

अगर मुसलमान की बात करें तो उसे सिर्फ एजुकेशन की जरूरत है। अगर 20 साल का एक टारगेट मुसलमान सेट कर लें तो 20 साल में एक बदलाव आएगा, एक जनरेशन आएगी। एजुकेशन के मामले में हमने बहुत कोशिश की है। हमसे ज्यादा किसी ने नहीं की है इस देश में। हमारे 3 हजार से ज्यादा प्राइमरी स्कूल चलते हैं मदरसों के साथ। जहां मेन स्ट्रीम प्राइमरी एजुकेशन होती है। हमने लड़कियों के लिए टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज बनाया और अब आगे लड़कियों के लिए वेस्टर्न यूपी में मेडिकल यूनिवर्सिटी बनाने की सोच रहे हैं।

ये बहुत बड़ा मुल्क है तो सबसे पहले लोगों को इसके लिए तैयार करना है कि एजुकेशन की जरूरत क्यों है। हम मुसलमानों से ये कह रहे हैं कि तुम्हें बच्चों और बच्चियों को पढ़ाना है खासतौर से बच्चियों को। ये एक दिन का काम नहीं है। इसके लिए आपको 20 से 30 साल का टार्गेट सेट करना पड़ेगा। जो बच्ची आज पढ़ेगी उसी आगे वाली जेनरेशन उसका रिजल्ट होगी। तो 40 साल बाद यापको ये मालूम होगा कि हमने क्या खोया और क्या पाया।

मुझे अगर मौका मिलेगा तो मुस्लिम कम्यूनिटी ही नहीं बल्की सबके लिए एजुकेशन, प्राइमरी हेल्थ और समाज में आजादी के नाम पर जो नंगापन फैलाया जा रहा है जिससे हमारी नसल की नसल बर्बाद हो रही है उसको ठीक करने के लिए बोलूंगा। औरतों को बराबरी मिलनी चाहिए लेकिन कपड़े उतारने से बराबरी नहीं मिलती एटीट्यूड बदलने से बराबरी मिलती है। औरत को बाजार में खड़ा कर दिया और घर में उसके साथ वही ढंग है दहेज का भ्रूण हत्या का। ये कैसी आजादी है।

Thursday, April 02, 2009

हिंद - पाक में आतंकवादी हमले--किसका षड़यंत्र

हिंद - पाक में आतंकवादी हमले--किसका षड़यंत्र


Aziz Burney
Group Editor Roznama Rashtriya Sahara
भारत और पाकिस्तान आतंकवाद के लिए उपजाऊ ज़मीन साबित हो रहे हैं। इससे पूर्व अफगानिस्तान और इराक आतंकवाद का केन्द्र बन गए थे और पूरी दुन्या में अमेरिका ने आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध करने का प्रण करते हुए यदि उन्हें तबाह न किया होता तो आज भी अफगानिस्तान और इराक आतंकवाद की आग में जल रहे होते। न वहां शान्ति प्रिय सरकारें चल रही होती, न हामिद करजई और नूरुल अलमालिकी जैसे शान्ति प्रिया, देश भक्त, मानवता प्रेमी शासक और नेता इन देशों को मिलते। भला हो अमेरिका का के उसे ११ सितम्बर २००१ को न्यू यार्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकवादी हमले के बाद पूरी दुन्या से आतंकवाद को मिटाने की ज़िम्मेदारी ली वरना खुदा जाने क्या होता?अब आप आशा कर सकते हैं के जिस तरह अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक से आतंकवाद को समाप्त किया उसी तरह भारत और पाकिस्तान से भी आतंकवाद को समाप्त किया जा सकता है। वास्तव में हम भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली कौमें हैं ( दोनों में से जो शब्द आप को उचित लगे) जिन्हें अपने वर्तमान और भविष्य के बारे में स्वयं सोचने की आव्यशकता नहीं है, यह उत्तरदायित्व भी अमेरिका ने स्वीकार कर लिया। यदि हम सोच सकते तो शायद यह अवश्य सोच लेते की क्या कारण है के आतंकवाद या आप्राकृतिक मौत के चलते सबसे अधिक भारत और पाकिस्तान ने अपने नेताओं को खोया है। ३० जनवरी १९४८ को स्वतंत्रता के मसीहा राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या से लेकर पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी की हत्या तक हमने अपने अनेक राष्ट्रिय नेताओं को खोया है।अगर आतंकवादी हमलों में मरने वाले आम लोगों की बात करें तो यह सूची बहुत लम्बी हो जायेगी। इसी तरह पाकिस्तान ने फांसी के तख्ते पर चढाये जाने वाले जुल्फिकार अली भुट्टो, हवाई दुर्घटना में जनरल जियाउल हक़ और पिछले वर्ष एक आतंकवादी हमले में बेनजीर भुट्टो को खोया है। इस प्रकार पाकिस्तानी जनता की बात करें तो मेरियट होटल पर हुए आत्मघाती हमले से लेकर पुलिस ट्रेनिंग सेंटर पर हुए आतंकवादी हमले तक उन्होंने भी सेंकडों शान्ति प्रिया नागरिकों को खोया है। अगर आतंकवादी हमलों में मारे गए सभी सभी लोगों की बात करें तो बात चाहे भारत की हो या पाकिस्तान की, यह संख्या लाखों से कम नहीं है। हम दोनों ही देश शायद इस बात से संतुष्ट हो जाते हैं के बम धमाका भारत में हो तो निशाना पाकिस्तान को बना दिया जाए और जब बम धमाका पाकिस्तान में हो तो वो इशारा भारत की और कर दे और मीडिया को हर बम धमाके के बाद पहले से ही सुनिश्चित किए गए आतंकवादी संघटनों के नामों को सामने रखने का अवसर मिल जाए।बम धमाके अगर भारत में होते हैं तो यह ज़िम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन और लश्करे तैय्यबा पर डाली जा सकती है और अगर यह बम धमाके पाकिस्तान में हो तो दोषी ठहराने के लिए अल्काइद और तालिबान का नाम ही काफ़ी है। हम यह कहना नहीं चाहते के यह आतंकवादी संघटन इन हमलों में शामिल नहीं होंगे या इन आतंकवादी संघटनों को संदेह के दायरे से बहार रखा जाए, मगर इस से हटकर भी कुछ सोचने की आव्यशकता है। आख़िर बिन लादेन और अलकायदा के भूत का नाम लेकर कितने देशों को नष्ट करने की ज़मीन तैयार की जायेगी?हम यह क्यूँ नहीं सोचते के भारत और पाकिस्तान की तबाही के पीछे किसी और शक्ति का उद्देश्य भी छुपा हो सकता है? क्या हम अफगानिस्तान और इराक़ की परिस्थितियों को अनदेखा कर दें , इस पर गौर न करें के इन दोनों देशों को किस प्रकार तबाह किया गया, क्या यह सच हमारे सामने नहीं है के ९/११ के बाद आतंकवाद पर नियंत्रण पाने के बहने अफगानिस्तान और इराक़ को तबाह कर दिया गया? अमेरिका द्वारा खुले आम भयानक आतंकवादी हमले किए गए, हजारों लाखों की संख्या में मासूम इंसानों की जानें गयीं जिन में अस्पतालों में इलाज करा रहे रोगी भी थे, मासूम बच्चे और औरतें भी थीं। फिर भी हम अमेरिका को शान्ति का मसीहा मानते हैं। उस ने अफगानिस्तान और इराक़ में अपनी कठपुतली सरकारें बनाकर इराक़ की तेल की दौलत पर कब्ज़ा कर लिया और अफगानिस्तान को परदे के पीछे अपनी गुलामी में ले लिया। हमें लगता है के अब पाकिस्तान की बारी है।जिस प्रकार तालिबान का बहाना लेकर अफगानिस्तान को तबाह किया गया था उसी तरह अब तालिबान का बहाना बना कर पाकिस्तान को तबाह किया जायेगा, क्यूंकि पाकिस्तान परमाणु शक्ति है, अफगानिस्तान और इराक़ से बड़ा और ताकतवर देश है, अतः उसे तबाह करने की योजना भी उससे बड़ी और चतुराईपूर्ण होगी। पाकिस्तान को तबाह करने के लिए उस पर चारों तरफ़ से हमलों की ज़रूरत होगी। पाकिस्तान के अन्दर इतने आतंकवादी हमले होंगे के हर तरफ़ तबाही का दृश्य होगा, सरकार असफल हो जायेगी, आतंकवाद पर नियंत्रण न पाने की स्थिति में एक तरफ़ भारत पर आरोप लगाया जायेगा, दूसरी तरफ़ अमेरिका से सहायता की प्रार्थना की जायेगी।फिर अमेरिका पाकिस्तान में दाखिल होने के बाद वहां के शासकों को यह समझाने में सफल हो जायेगा के तुम्हारे परमाणु शक्ति संस्थान अगर तालिबान के हाथ में आगये तो ज़बरदस्त तबाही होगी। अत: इस की सुरक्षा का उत्तरदायित्व हमारे पास रहने दो। लाचार और मजबूर पाकिस्तानी शासक सद्दाम हुसैन का हाल देख चुके हैं, इस लिए न करने की हिम्मत नहीं कर सकेंगे। परिणाम स्वरुप पाकिस्तान की परमाणु शक्ति अमेरिका की मुट्ठी में होगी। उसके बाद अमेरिका तालिबान को समाप्त करने के नाम पर पाकिस्तान का भी वही हाल करेगा जो अफगानिस्तान और इराक़ का हुआ।भारत और पाकिस्तान के बीच समबन्ध इस सीमा तक ख़राब होंगे के भारत को पाकिस्तान की तबाही पर कोई दुःख नहीं होगा और वो उसे तबाह करने के लिए हर तरह की सहायता देने के लिए भी तैयार हो जायेगा। इसलिए भारतीय नेतृत्व को यह समझा दिया जायेगा के देखो तालिबान का पाकिस्तान पर प्रभुत्व हो चुका है और अब वो भारत से केवल १० किलो मीटर दूर हैं। अगर तालिबान का सर नहीं कुचला गया तो वह पाकिस्तान के बाद भारत को भी आतंकवाद द्वारा तबाह कर देगा। आपको मुंबई में हुए (२६/११) आतंकवादी हमले से सीख लेना चाहिए और आतंकवाद के ख़िलाफ़ इस जंग में हमारे साथ खड़ा होना चाहिए। इसके बाद वही होगा जो इराक़ की तबाही के दौरान हुआ था, जिस तरह अमेरिका ने इराक़ को तबाह करने के लिए पाकिस्तान की धरती का उपयोग किया था, उसी प्रकार पाकिस्तान को तबाह करने के लिए भारत की ज़मीन प्रयोग की जायेगी। इस काम को पूरा करने में अमेरिका का परस्त मीडिया ज़बरदस्त रोल निभाएगा। आम जनता को मानसिक रूप से तैयार करेगा के तालिबानी आतंकवाद से छुटकारा पाने के लिए अमेरिका का साथ देना आवयशक है।पिछले एक महीने में दिखायी जाने वाली खबरें अगर आपके मस्तिष्क से ओझल न हुई हों तो आप को याद होगा के इसी महीने अर्थात मार्च में पाकिस्तान की एक मस्जिद में ठीक जुमे की नमाज़ के बीच आतंकवादी हमला हुआ और उसके बाद अब पाकिस्तान के पुलिस ट्रेनिंग सेंटर पर। इन दोनों आतंकवादी हमलों से पहले ही मीडिया तालिबान के भय से पूरी दुन्या को सूचित करता रहा और उसके बाद वास्तव में यह भय सच के रूप में दिखाई देने लगा।यह बात संदेह से परे क्यूँ है के यह पाकिस्तान और भारत के ख़िलाफ़ सुनियोजित षड़यंत्र है? ११ सितम्बर २००१ के बाद पूरी दुन्या को जिस तरह आतंकवाद का भय दिखाया गया और अफगानिस्तान व इराक़ को तबाह कर दिया गया उसका लाभ आख़िर किसे पहुँचा? किस ने अपनी श्रेष्ठता साबित की? किसे ने अपने आप को शक्तिशाली साबित किया? किसने पेट्रोल की दौलत पर कब्ज़ा किया? किसने अपने हत्यारों को बेचने के लिए ज़मीन तैयार की? फिर कब तक हम इन तथ्यों पर विचार नहीं करेंगे? हमने अपने इसी रोजनामा राष्ट्रीय सहारा में पिछले वर्ष लगभग एक महीने तक पूरे एक पृष्ठ द्वारा "९/११ का सच" सामने रखने के प्रयास किया था। आज भी एक हज़ार से अधिक पृष्ठों पर आधारित यह रिपोर्ट हमारे पास मौजूद हैं।इन्टरनेट द्वारा तथ्यों की तलाश करने वाले आज भी ऐसी असंख्य रिपोर्टों का अध्ययन कर सकते हैं के जिन से साबित होता है के अमेरिका ९/११ बिन लादेन या अलकायदा का कारनामा नहीं बलके सी आई ऐ और मूसाद शक के दायरे में हैं। क्या भारत में इंडियन मुजाहिदीन, लश्करे तैय्यबा और पाकिस्तान में तालिबान और अलकायदा, सी आई ऐ और मूसाद की ही साजिशी टोली है? यह बात कड़वी है मगर सच भी हो सकती है। भारत और पाकिस्तान अगर मिल बैठ कर सोचें तो क्या वह ही एक दूसरे की तबाही पर आमादा है या कोई और इन दोनों को तबाह करने की साजिशें रच रहा है?